आज चर्चा करते है वास्तु शास्त्र के अनुसार सूर्य देव की, किस दिशा के स्वामी होते है और क्या लाभ है सूर्य देव को वास्तु अनुसार घर में स्थापित कर के.. आइये जानते है.
वास्तु शास्त्र अपने आप में एक बहुत गहरा ज्ञान है ये जिंदगी के प्रत्येक पहलु पर असर डालता है, आज हम बात करते है सूर्य देव की, अथर्ववेद में कई जगह इन्हे अर्यमा नाम से भी पुकारा जाता है. वास्तु शास्त्र में भी अर्यमा और सूर्य देव दोनों का जिक्र है जो की पहले अर्यमा देव आते है और बाद में सूर्य में बदल जाते है.
सूर्य देव पूर्व दिशा में आते है जो की वायु की दिशा है और वनस्पति की जिससे ऑक्सीजन बनती है और हमे प्राण ऊर्जा मिलती है, पूर्व दिशा स्पर्श इंद्री से भी जुडी है. पूर्व दिशा खराब होने पर स्किन issues आते है.
वास्तु शास्त्र के 16 मुख्य कक्षों के अनुसार पूर्व दिशा जहाँ सूर्य देव विराजमान है वो दिशा सामाजिक जुड़ाव के लिए मानी गई है, हमारा समाज के status कैसा है कैसे लोग हमसे जुड़े है पूर्व दिशा से देखा जाता है. अथर्ववेद में सूर्य देव को स्त्री को मनचाहा वर और पुरुष को मनचाही स्त्री प्रदान करने वाला बताया गया है.
राजनीती से जुड़े लोगों के लिए ये दिशा घर की सबसे जरूरी दिशाओं में से एक है. इस दिशा में कोई भी दोष आपको उपरोक्त परेशानियां देता है, ये दिशा घर की पूर्व दिशा (78.75-101.25) degree की होती है.
इस दिशा का कारक तत्व लकड़ी होती है, रंग हरा होता है. लाल, पीला, सफ़ेद यहाँ नुकसान देते है, किचन, टॉयलेट, स्टोर नुकसानदायक है.
इस दिशा में लकड़ी का सूर्य लगाना काफी लाभदायक होता है, लेकिन निर्देशानुसार ही लगाना चाहिए क्यूंकि कोई भी वास्तु symbol बनाने और लगाने के नियम होते है.
आप हमारे द्वारा भी सूर्य मंगवा सकते है जिसमे आपको इस लगाने की विधि बताई जाएगी या पूर्व दिशा को ठीक करने के उपाय पूछ सकते है (paid consultancy)..
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