कभी कभी एक बात सुनने को मिलती है नेकी कर दरिया में डाल यानी भलाई कर के भूल जाओ. लेकिन एक और कहावत है नेकी कर और जूते खा, यानी जितनी भलाई करते जाओगे उतनी परेशानियां बढ़ती ही जा रही है. ज्योतिष में भी ऐसा एक योग होता है जिसमे व्यक्ति जितना अच्छा करता है बदले में उतनी लानते उसे सहनी पड़ती है. आइये जानते है.
ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को भला करने वाला माना गया है जब कुंडली में बृहस्पति मंदा हो तो भला करना अच्छा नहीं माना जाता। केतु ग्रह बृहस्पति का चेला या ये समझ लीजिये एक शिष्य माना गया है. जब कुंडली में बृहस्पति मंदा हो और केतु भी खराब हो जाए तो ऐसे में भला करते ही मुसीबत आनी शुरू हो जाती है. और ये मुसीबत बहुत बड़ा रूप लेती है.
बृहस्पति कुंडली के एक से छह भावों तक मंदा नहीं माना जाता उसके बाद के घरो में मंदा माना गया है. लेकिन ये मंदा जब ही होगा जब उस भाव से संबंधित मंदे कार्य कर दिए जाए तो.
जैसे बृहस्पति 7 में कपडा दान करते ही बृहस्पति मंदा समझे
8 में अफवाह उड़ते ही मंदा समझे ससुराल से ना लड़े
9 यहाँ मंदा नहीं होता लेकिन केतु जिस भाव में है उसे खराब करते ही मंदा हो जायेगा.
10 भाव - भलाई के कार्य ना करे अपनी मेहनत के पैसे चार्ज करे.
11 - पिता की इज़्ज़त बहुत जरुरी है. अपने घर का माहौल गन्दा करते ही मंदा हो जायेगा.
12 - इस भाव में व्यक्ति बड़ी बड़ी बाते करेगा और पिछले जन्म की या तंत्र की बातों से अपना बृहस्पति मंदा करेगा.
घर में धर्म ग्रन्थ खराब हालत में होने पर भी बृहस्पति के मंदे फल देखने को मिलते है.
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