ग्रहण का मतलब होता है ग्रास करना या खा जाना तथा इसी प्रकार ऐसा माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के सूर्य से जुड़े क्षेत्रों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। अगर वैज्ञानिक ढंग से इस ग्रहण योग अध्ययन करते हैं तो हम देखें राहु तथा केतु प्रत्येक राशि में लगभग 18 मास तक रहते हैं, सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं. मान लीजिए कि राहुआज के समय में मिथुन राशि में स्थित हैं तथा केतु धनु राशि में स्थित हैं। जब जब सूर्य गोचर करते हुए इन दोनों राशियों में से किसी एक राशि में आएंगे तथा एक महीने तक इस राशि में रहेंगे, इस बीच
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