Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2019

कुंडली में ग्रहण योग का सच

ग्रहण का मतलब होता है ग्रास करना या खा जाना तथा इसी प्रकार ऐसा माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य  के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के सूर्य से जुड़े क्षेत्रों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य  के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है।  कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य  पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है।  अगर वैज्ञानिक ढंग से इस ग्रहण योग अध्ययन करते हैं तो हम देखें राहु तथा केतु प्रत्येक राशि में लगभग 18 मास तक रहते हैं, सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं.  मान लीजिए कि राहुआज के समय में मिथुन राशि में स्थित हैं तथा केतु धनु राशि में स्थित हैं। जब जब सूर्य गोचर करते हुए इन दोनों राशियों में से किसी एक राशि में आएंगे तथा एक महीने तक इस राशि में रहेंगे, इस बीच

लाजावर्त मणि

लाजावर्त मणि नाम- हि. लाजवर्द, लाजावर्त, राजावर्त, अं. लैपिस लैजूली। आयुर्वेद निघण्टु के धातु वर्ग में इस पत्थर के बारे में लिखा मिलता है, ये क्रिस्टल ठंडा, पित्त को दूर करने वाला, माइग्रेन, वमन और हिचकी की दिक्कत को ठीक करता है. ये नील रंग का  चिकना पत्थर होता है, जिसमे gold का कुछ अंश मिला होता है. निघण्टु शास्त्र के अनुसार राहु ग्रह से जुडी किसी भी बाधा दूर करने के लिए उपयोग करते है.  इसका ज्यादा संबंध आज्ञा चक्र और throat चक्र से जुड़ा होता है.  इस मणि का रंग मयूर की गर्दन की भाँति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है इसके प्रभाव से बल, बुद्धि एवं शक्ति की वृद्धि होती है.  भूत, पिषाच, दैत्य, सर्प आदि का भय दूर करने के लिए lapis का यूज़ किया जाता है। अन्य रत्नों की भांति इस मणि में भी दोष पाये जाते हैं। दोषी मणि को धारण करना अशुभ फलदायक होता है इसलिए सदैव निर्दोष मणि ही धारण करना चाहिए। खून साफ़ करने और बाल झड़ने में ये फायदा करता है, चक्क्र आना और ब्लड प्रेशर low की दिक्कत में ये फायदा करता है. 

ads