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vastu lecture 1

वास्तु शास्त्र एक प्राचीन  ग्रन्थ है जिसका मुख्य संबंध जीवन जीने के तरीके से है. वास शब्द रहने से जुड़ा है और तू शब्द नियम से जुड़ा है. वास्तु का एक मुख्य ग्रंथ समरांगण सूत्रधार के अनुसार एक वास्तु शास्त्री यानी जो वास्तु शास्त्र की प्रैक्टिस करता है वो व्यक्ति जभी वास्तु को जान सकता है जब वो वास्तु में खोना सीख जाए. ये इतना गहरा विज्ञानं है जो मात्र प्रॉपर्टी के नक़्शे से जुड़ा हुआ नहीं है इसमें बहुत छोटी छोटी चीज़ो का ध्यान रखा गया है.  जैसे ज्योतिष, त्रिकोणमिति, ज्यामिति और यंहा तक की ह्यूमन बेहेवियर तक का वर्णन वास्तु ग्रंथो में देखने को मिलता है. तो एक वास्तु की प्रैक्टिस करने वाला व्यक्ति नेचुरल रूप से अन्य विषयों में पारंगत अपने आप ही हो जाता है.  जैसे एक छोटी सी चीज़ बताता हूँ राहु काल, इसका मुख्य संबंध ज्योतिष से है लेकिन वास्तु शास्त्र में बहुत शुरुआत में ही इसे समझ दिया जाता है के किसी दिन यानी किस वार को किस दिशा में दोष होगा। यदि क्लाइंट आपको किसी वार को बुलाये तो आपको पता हो के क्या दोष है ऐसा वास्तु ग्रंथो में पहले ही लिखा गया जिसका बेस राहु काल था.  इस तरह से वास्तु विद्या

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