ग्रहण का मतलब होता है ग्रास करना या खा जाना तथा इसी प्रकार ऐसा माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के सूर्य से जुड़े क्षेत्रों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है।
कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है।
अगर वैज्ञानिक ढंग से इस ग्रहण योग अध्ययन करते हैं तो हम देखें राहु तथा केतु प्रत्येक राशि में लगभग 18 मास तक रहते हैं, सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं.
मान लीजिए कि राहुआज के समय में मिथुन राशि में स्थित हैं तथा केतु धनु राशि में स्थित हैं। जब जब सूर्य गोचर करते हुए इन दोनों राशियों में से किसी एक राशि में आएंगे तथा एक महीने तक इस राशि में रहेंगे, इस बीच संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक जातक की कुंडली में ग्रहण योग होगा क्योंकि सब जातकों की कुंडलियों में सूर्य राहु अथवा केतु के साथ ही स्थित होंगें।
इस प्रकार हर 12 महीने में 2 महीने सूर्य ग्रहण योग के हुए, यानी संसार में 12 में से 2 व्यक्ति सूर्य ग्रहण से पीड़ित है यहाँ मैं चंद्र ग्रहण की बात नहीं कर रहा वरना 75% कुण्डलिया पीड़ित ही होंगी.
लेकिन अगर रिसर्च करने बैठे तो ये बात सही नहीं बैठती, ग्रहण योग के लिए राहु अथवा केतु का अशुभ अवस्था में होना, सूर्य का अशुभ अवस्था में होना आवश्यक है. कुछ कुंडलियां हमारे पास इस तरह से आती है के राहु की स्थिति शुभ है लेकिन सूर्य अशुभ अवस्था में है राहु उस अशुभ प्रभाव से बचा भी सकता है. इसलिए ग्रहण शुभ अशुभ दोनों फल देने में समर्थ होगा.
उदाहरण के लिए किसी कुंडली में शुभ केतु का शुभ सूर्य के साथ संबंध जातक को किसी सरकारी संस्था में लाभ, प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व वाला पद दिलवा सकता है तथा यह योग जातक को बहुत योग्य तथा सक्षम पुत्र भी प्रदान कर सकता है जो जातक के लिए बहुत भाग्यशाली तथा शुभ सिद्ध होते हैं।
इस लिए किसी कुंडली में केवल राहु अथवा केतु के सूर्य के साथ संबंध के आधार पर ही कुंडली में ग्रहण योग के बनने का निर्णय नहीं लेना चाहिए तथा कुंडली में राहु, केतु, सूर्य के बल, स्वभाव तथा स्थिति का भली भांति निरीक्षण करने के पश्चात ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कुंडली में इन ग्रहों के संयोग से ग्रहण योग बन रहा है अथवा शक्ति योग जैसा कोई शुभ योग।
इस लिए किसी कुंडली में केवल राहु अथवा केतु के सूर्य के साथ संबंध के आधार पर ही कुंडली में ग्रहण योग के बनने का निर्णय नहीं लेना चाहिए तथा कुंडली में राहु, केतु, सूर्य के बल, स्वभाव तथा स्थिति का भली भांति निरीक्षण करने के पश्चात ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कुंडली में इन ग्रहों के संयोग से ग्रहण योग बन रहा है अथवा शक्ति योग जैसा कोई शुभ योग।
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