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भृश वास्तु देवता - bhrish vastu devta vastu

भृश वास्तु जोन - (112.50-123.75)  दक्षिण-पूर्व (southeast) के पूर्व की तरफ भृश वास्तु जोन बड़ा महत्वपूर्ण कोण माना जाता है. इस vastu zone से हमें दो वस्तुओं से मिलकर या आपस में घर्षण से एक वस्तु प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त होती है. 

एस्ट्रोवास्तु के अनुसार दिशाए और कुंडली - Astrovastu directions and kundli

  काफी लोग आजकल वास्तु के साथ ज्योतिष का संबंध स्थापित करते है और ये होता भी है. दोनों शास्त्र एकदूसरे के बारे में बताते भी है. आज चर्चा  करते है Astrovastu के अनुसार किस भाव का सबंध घर में किस दिशा  से हो सकता है. 

पिछला जन्म और केतु - ketu and our past life curse

नमस्कार आज बात करते है केतु और पिछले जन्म के संबंध के बारे में. देखिये कुंडली का हर ग्रह किसी न किसी पिछले जन्म की घटना से जुड़ा होता है लेकिन कुछ घटनाये ऐसी होती है जो इस जन्म में दोष या एक लोन बनकर सामने आकर खड़ी हो जाती है जिनका यदि निवारण ना किया जाए तो बाकी उपाय भी काम के नहीं रहते। 

ईशान में किचन के उपाय - NORTHEAST KITCHEN REMEDIES

अगर आपका किचन उत्तर दिशा या ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) कोने में  है तो वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा किचन आपको काफी परेशान कर सकता है. ऐसे घरो में शांति व् सेहत को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है और यदि साथ किचन काले रंग का उपयोग है तो  तलाक व् सरकारी मुक़दमे सम्बन्धी दिक्कते भी आ जाती है.

शनि राहु युति का ज्योतिष में महत्व - Saturn Rahu conjunction in Astrology

  नमस्कार दोस्तों ज्योतिष सूत्र में आज चलते है एक ऐसी युति की ओर जो लगभग हर परेशान घर में होती है. आज बात करते है शनि राहु की युति। एक तरह से समझिये जूते में लगी गंदगी. क्यूंकी शनि जूता और गंदगी राहु। अगर आप अपने अंदर कल्पना शक्ति कजाते है तो ज्योतिष के सूत्र आसानी से समझ आने लगते है. तो आज इसी युति पर हम लोग चर्चा करते है. 

मंगल के तत्व से जाने इंसान की छिपी ताकत - mars element power in astrology

राम राम दोस्तों  आज बात करते है एक छोटे से विषय की के मंगल आपकी कुंडली में किस तत्व में है.  मंगल ही क्यों ? जब आपके सामने कोई मुसीबत आती है या कोई काम आपके पास आता है तो आप उसे कैसे हैंडल करते है वो आपकी कुंडली मंगल की प्रकृति पर निर्भर करता है. लेकिन यंहा प्रकृति का मतलब मंगल के तत्व से है. जन्म पत्रिका में हर राशि के तत्व होते है मूल रूप से 4 तत्व जन्म कुंडली में देखे जाते है.  मंगल मूल कुंडली में शुरुआत यानी पहला भाव और अंत यानी के आंठवे भाव का स्वामी है. हम कैसे किसी कार्य की शुरआत करते है कैसे रियेक्ट करते है ये मगल के तत्व से पता चलता है और यदि इस प्रकृति को समझ लिया जाए तो व्यक्ति अपनी कार्य करने के तरीके को जानकार उसमे सुधार कर सकता है जिससे सफलता उसे बहुत जल्दी मिल सकती है. यंहा प्रश्न आता है के मंगल के भाव को भी देखा जाना चाहिए देखिये मंगल जिस भाव में बैठा है उस भाव में हम अपनी ऊर्जा निकालते है वंहा अपना उत्साह व्यक्त करते है. लेकिन प्रेरणा मंगल अपने तत्व अनुसार लेगा और राशि अनुसार मंगल की प्रकृति बनेगी.  सबसे पहले बात करते है अग्नि तत्व की, जब मंगल मेष - ...

जन्म कुंडली में बारहवे भाव के स्वामी का हर भाव में क्या फल होता है - twelfth house lord in different houses

   नमस्कार आज बात करते है कुंडली के बारहवें भाव का स्वामी अलग अलग भावो में बैठकर कैसे फल देता है. बारहवें भाव को व्यय का स्वामी माना जाता है यानी खर्चे का. अब ये खर्च बड़ी अजीब चीज़ है क्यूंकि खर्च का नाम सुनकर पैसे का खर्च समझ आता है लेकिन खर्च हर समय हमारी ऊर्जा हो रही है हमारा समय हो रहा है और यदि हमारी ऊर्जा सही जगह खर्च हो रही है तो बदले में जो मिलेगा वो बहुत बड़ा होगा.  जैसे यदि कोई जीम में ऊर्जा लगा रहा है या योग में ऊर्जा लगा रहा है तो बदले में शारीरिक लाभ होगा और यदि सिर्फ सोचने में समय लगा रहा है तो शरीर को कोई लाभ नहीं होगा लेकिन दोनों अवस्थाओं में 12 भाव एक्टिव है ऊर्जा लग रही है . ऊर्जा तो खर्च हर अवस्था में होती है और ये जिम्मा बारहवे भाव का है के किधर खर्च हो.  ऐसे ही पैसा खर्च होता है हो सकता है कोई पार्टी कर ले और दूसरा व्यक्ति सोना खरीद ले दोनों अवस्थाओं में पैसा तो खर्च हो गया लेकिन जो सोना खरीद रहा है वो इन्वेस्टमेंट हो गयी जिसका लाभ कुछ दिन बाद मिल सकता है, बारहवा भाव अगर अच्छा है तो हमारा खर्च किया गया समय या पैसा या मेहनत सही समय आने पर वापस लाभ क...

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My Name is Prateek Gupta. I am a professional astrologer and vastu consultant. i am doing practice from many years. its my passion and profession. I also teach astrology and other occult subject. you can contact me @9899002983