नमस्कार, आज हम बात करेंगे गुरु से शनि ग्रह की दूरी का आपकी कुंडली पर क्या प्रभाव होता है. आप जो किस्मत लेकर पैदा हुए है उसका कितना हिस्सा आप ले पाओगे ये भी इस दूरी से पता चल सकता है साथ ही क्या उपाय होने चाहिए ये भी समझेंगे।
आपने सुना होगा के "गुरु को मानने वाले बहुत होते हैं, लेकिन उनकी आज्ञा मानने वाले बहुत कम होते हैं"
इसे यदि हम ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखें, तो इसके पीछे एक गहन मानसिक, आध्यात्मिक और ग्रहीय तत्त्व छिपा हुआ है। यहाँ मैं आपको "गुरु से शनि हर भाव में होने पर" एक-एक करके विस्तार से बताता हूँ — ताकि यह समझा जा सके कि जब व्यक्ति गुरु यानी ज्ञान से देखे शनि यानी अनुशासन, आज्ञा पालन को, तो उसका मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और व्यवहारिक रूप से क्या प्रभाव होता है।यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि व्यक्ति गुरु के ज्ञान को कितनी गहराई से आत्मसात करता है और कितना उसे अपने कर्मों में उतारता है।
अब बात करते है गुरु से शनि की दूरी की। सबसे पहले बात करते है यदि ये दूरी सिर्फ एक युति हो यानी एक ही भाव में हो तो
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व्यक्ति के भीतर ज्ञान और अनुशासन दोनों का मेल होता है।
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यदि शुभ युति हों तो : गुरु की आज्ञा मानने वाला और जीवन भर एक ही मार्ग पर अडिग जातक होता है.
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यदि अशुभ हों जाये तो जातक ज्ञान को लेकर अहंकार, गुरु को "challenge" करने वाला होगा और यही उसके पतन का कारण होगा.
दूसरे भाव से गुरु से शनी यानी गुरु से एक घर आगे शनी आ जाये तो
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व्यक्ति गुरु से संतुलित दूरी बनाता है, लेकिन बातें ध्यान से सुनता है।
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गुरु की बातों को संचित करता है, पर धीरे-धीरे अमल करता है।
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ऐसा व्यक्ति कभी तुरंत नहीं मानता, पर धीरे-धीरे मान लेता है।
गुरु से तीन भाव आगे शनी आये तो
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व्यक्ति गुरु की बातों को मानने से पहले तर्क करता है।
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शंका करता है, खुद verify करता है।
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Guru ki agya tab maanta hai jab khud ko “अनुभव” होता है। गुरु से प्रश्न करना सही बात है लेकिन बहस करना बुरा फल देता है. यहां आप एक बात ये समझ लेना गुरु कोई आपका स्कूल टीचर नहीं बल्कि आपके जो भी सलाहकार है वो सब गुरु माने जायेंगे यहाँ पर.
गुरु से शनी चार भाव आगे आने पर
बाहर से आज्ञाकारी दिखता है, पर भीतर शंका करता है।
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मन के स्तर पर गुरु को अपनाने में समय लगता है।
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गुरु की आज्ञा से मानसिक द्वंद्व क्यूंकि गुरु आपके मानसिक comfort को रोकेगा और वही आपको बुरा लगेगा लेकिन बाद में पता चलेगा के वो ही सही थे. एक दिन गुरु को अपनाना ही पड़ता है.
अद्भुत योग! व्यक्ति गुरु की आज्ञा को धर्म मानकर पालन करता है।
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गुरु के कहे मार्ग पर चलता है।
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ऐसा व्यक्ति अध्यात्मिक रूप से जागरूक, और एक सच्चा शिष्य होता है। जैसा गुरु हो वैसा ही शिष्य हो जाता है इसलिए जिन्हे आप गुरु मान रहे है उनके बारे में जरूर जान लीजिये.
गुरु से शनी छठे भाव में होने पर
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व्यक्ति को गुरु की आज्ञा से चिढ़ हो सकती है।
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या तो guru se disagree karega, ya unki baat ko sabit karne ki कोशिश karega।
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भीतर ego या past कर्मों का resistance होता है। आप पूरी तरह से असहमत हो सकते है इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन जगह जगह बुराई करना आपके कर्मों को ही खराब करेगा क्यूंकि disagree आप है तो इसका मलतब ये नहीं के आप सही हो.
अब बात करते है गुरु और शनी आमने सामने बैठे हो तो क्या होगा, अब व्यक्ति गुरु की बात मानता है, पर समाज या जीवनसाथी के कारण उसपर चल नहीं पाता।
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उस दो दिशाओं में खिंचाव महसूस होगा
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"मैं मानता हूँ पर निभा नहीं पा रहा हूँ" जैसी स्थिति उसके साथ होगी। यहाँ उसे दोनों चीज़ो में balance बना कर चलना चाहिए.
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व्यक्ति को गुरु की आज्ञा मानने से पहले बहुत जीवन-परिक्षाएं मिलती हैं।
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जब ये योग शुभ फल देता है, तो व्यक्ति को गुरु की शक्ति गूढ़ रूप से समझ आती है।
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जीवन बदलने वाले transformation guru ke द्वारा hota hai. इसलिए गुरु जब भी जीवन में आएंगे तो जीवन पूरी तरह बदल जायेगा।
आदर्श योग माना जाता है
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गुरु की आज्ञा ही धर्म है, और व्यक्ति उसे आत्मा से मानता है।
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बहुत बार ऐसे लोग आध्यात्मिक गुरु के सेवक या प्रचारक बनते हैं।
व्यक्ति गुरु के सिद्धांतों को अपने profession और जीवन के कार्य में लागू करता है।
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यह बहुत practical और कर्मप्रधान शिष्य होता है।
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समाज में गुरु के कार्य को आगे बढ़ाता है। यहाँ जीवन में practical होना फायदा देता है आप सपने देखें कोई बुराई नहीं है लेकिन कर्म फल सिद्धांत को हमेशा पहले रखे.
गुरु से शनी गयारह भाव आगे आने
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व्यक्ति गुरु की आज्ञा को तब मानता है जब उसे उसमें कोई लाभ दिखे।
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यह “selective obedience” दिखाता है – सुविधा अनुसार पालन करता है।
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आधा शिष्य, आधा व्यापारी यानी ऐसे लोग गुरु के ज्ञान को पूरी तरह से व्यापार में उपयोग करते है लेकिन एक अच्छे शिष्य भी होते है.
या तो व्यक्ति गुरु की आज्ञा में पूर्ण समर्पित होता है (मोक्षमार्ग पर),
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या फिर वह दुनिया से, गुरु से, मार्ग से ही दूरी बना लेता है।
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बहुत intense योग होता है – या तो "गुरु को ईश्वर बना लेता है", या "गुरु से पलायन करता है।"
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