lecture 4 - ज्योतिष एवम वास्तु और 16 मुख्य दिशाएं
वास्तु में सभी ग्रहों की भी दिशा मानी गई है. ये दिशाएं इस प्रकार है.
गुरु - ईशान - नार्थईस्ट
सूर्य - पूर्व
शुक्र - सॉउथईस्ट - आग्नेय
दक्षिण - मंगल
दक्षिण-पश्चिम - राहु-केतु {कुछ जगह केतु को ईशान कोण में भी रखा जाता है}
पश्चिम - शनि
नार्थवेस्ट - चंद्र
उत्तर - बुध
बहुत सारे वास्तु treatments इन ग्रहों के आधार पर ही बताये जाते है, जैसे ईशान में मंदिर का होना ब्रहस्पति का कारक है. साथ ही जैसे कोई दोष घर में है जैसे टॉयलेट का दक्षिण-पश्चिम में होना जो की राहु का स्थान है अब यदि कुंडली में राहु खराब है और राहु की दशा आ जाये तो बहुत ज्यादा परेशानिया आ जाती है वेसे भी दक्षिण-पश्चिम में टॉयलेट होना राहु की खराबी दर्शाता है.
अब बात करते है दिशाओं की इनको compass की सहायता से कैसे प्राप्त करते है वो आपको बाद में बताया जायेगा पहले कितनी दिशाएं हम वास्तु शास्त्र में मानते है इसका ज्ञान लीजिये.
चार मुख्य दिशाएं
पूर्व
पश्चिम
उत्तर
दक्षिण
चार मुख्य कोण
उत्तर-पूर्व
दक्षिण-पूर्व
दक्षिण-पश्चिम
उत्तर-पश्चिम
इसके अलावा इन चार मुख्य कोनो को भी अलग अलग विभाजित किया जाता है
उत्तरपूर्व-पूर्व
उत्तरपूर्व
उत्तरपूर्व-उत्तर
दक्षिणपूर्व-पूर्व
दक्षिणपूर्व
दक्षिणपूर्व-दक्षिण
दक्षिणपश्चिम-दक्षिण
दक्षिणपश्चिम
दक्षिणपश्चिम-पश्चिम
उत्तरपश्चिम-पश्चिम
उत्तरपश्चिम
उत्तरपश्चिम-उत्तर
360 अंश एक प्रॉपर्टी के होते है इस प्रकार यदि 16 दिशाओं में प्रॉपर्टी को बांटे तो २२.5 अंश की एक दिशा आ जाएगी और इसी तरह से हम एक प्रॉपर्टी को 16 भागों में बाँट देते है.
इस प्रकार हमारे पास 16 दिशाए हो जाती है यही 16 दिशाए 16 मुख्य जोन्स कहलाते है, एक तरह से इन 16 ज़ोन्स का ज्ञान आपको वास्तु की 80% knowledge दे देता है.
एक बार दोबारा इन पर नज़र डालिये
1. उत्तरपूर्व - पूजा स्थल, शांति
2. उत्तरपूर्व-पूर्व -प्रजनन, ख़ुशी
3.उत्तरपूर्व-उत्तर - कुंडलिनी, रोग प्रतिरोधक क्षमता
4. पूर्व - सामाजिक रिश्ते व् जुड़ाव
5. दक्षिणपूर्व-पूर्व - मंथन कक्ष
6. दक्षिणपूर्व - सम्पति, ऊपर उठना, नकद पैसा
7. दक्षिणपूर्व-दक्षिण - पोषण, हिम्मत
8. दक्षिण - मान सम्मान
9.दक्षिणपश्चिम-दक्षिण (निकासी)
10.दक्षिणपश्चिम -पितृ, पारिवारिक लगाव, रिश्ते, हुनर
11.दक्षिणपश्चिम-पश्चिम - बचत, सीखने की क्षमता, ज्ञान
12. पश्चिम -लाभ, अवचेतन मन
13. उत्तरपश्चिम-पश्चिम - कोप, दुःख
14.उत्तरपश्चिम - सहायक, दिशा
15.उत्तरपश्चिम-उत्तर - आकर्षण, रतिक्रीड़ा स्थल
16.उत्तर- प्रचुरता, पैसा
ये सब वास्तु के ग्रंथो जैसे विश्वकर्माप्रकाश, मनसार, मयमतम में आसानी से मिल जाता है के कौन सी दिशा किस काम के लिए होनी चाहिए. उसी के अनुसार हमने यहाँ जोन को मान लिया, जैसे उत्तरपश्चिम-उत्तर को रति क्रीड़ा के लिए उपयुक्त माना गया तो हमने सेक्स व् आकर्षण का जोन माना।
इन 16 दिशाओं या समझ लीजिये 16 zones की अपनी अपनी चीज़े बंटी हुई है जिन्हें हम आगे विस्तार से समझेंगे. ये दिशाएं आपको याद रखनी जरूरी है. इन्हें निकलते कैसे है किन degrees पर ये स्थित होती है उसे वास्तु विन्यास के लेक्चर में समझेंगे.
 
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