Skip to main content

learn vastu shastra lecture - 3

 

lecture 3 - पांच तत्व - five element theory 



संसार की कोई भी वस्तु पंचमहाभूत से निर्मित है. इन्हीं पंच महाभूत तत्वों के गुण सम्मिलित होकर किसी स्थान को प्रभावित करते हैं| वास्तु को समझने के लिए इन पंच महाभूतों का एक संक्षिप्त परिचय आवश्यक है. ब्रह्मांड की हर वस्तु मूल रूप से पंच तत्वों- आकाश, अग्नि, जल और पृथ्वी के निश्चित अनुपात में मिश्रण के अनंत संयोगों से बना है. इन्हीं पाँचों तत्वों को पंच महाभूत कहा गया है| अपने अंदर, अपने आसपास, अपने आवास में, अपने विचार में, इन्हीं पंचमहाभूतों में सामंजस्य स्थापित करने से वांछित शक्ति, शांति और सुख की प्राप्ति होती है. वास्तु शास्त्र इन्हीं पाँचों मौलिक तत्वों में पूर्ण सामंजस्य स्थापित करा कर सहज लाभ प्राप्त कराने में हमारी मदद करता है. 



ब्रह्मांड की हर वस्तु में इन्हीं पाँच तत्वों का बोध संभव है. अतः वास्तु शास्त्र में इन्हें ही मौलिक तत्व की संज्ञा दी गई है.


आकाश तत्व यानी विस्तार, स्थान, या शून्य का होना है. भारतीय दर्शन में इसे अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया गया है. इसे देखा नहीं जा सकता, स्पर्श नहीं किया जा सकता, इसमें सुगंध या स्वाद भी नहीं होता परन्तु इन सबके पश्चात भी यह सर्वत्र व्याप्त है. आयुर्वेद में इसे ध्वनि की संज्ञा दी गई है. इसका न आदि है न ही अंत.


आकाश वह अनंत क्षेत्र है जिसमें सारे नक्षत्र, सूर्य, आकाशगंगा, सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है. इसकी मुख्य विशेषता ध्वनि है| वास्तुशास्त्र में आकाश का आशय भवन का खुला भाग है. यह भवन का आँगन है जिसे ब्रह्म स्थान माना गया है. इस स्थान के कारण भवन में नैसर्गिक ऊर्जा का प्रवाह निर्बाधित रूप से होता रहता है. 



जिस प्रकार ब्रह्मांड में आकाश का महत्व है उसी प्रकार भवन में खुले स्थान का महत्व है. भवन में खुले स्थान की आवश्यकता, मात्रा और दिशा-स्थिति का एक सामंजस्य होता है. वास्तु के अनुसार यह सामंजस्य ही भवन में सही ऊर्जा संचार सहायक होता है. 



वायु तत्व की व्यापकता पर जीवन निर्भर है. इसमें रूप, रस और गंध नहीं है. तत्व रूप में इसकी मुख्य विशेषता ध्वनि और स्पर्श है.सबसे सूक्ष्म तत्व वायु होने के कारण वायु तत्व बहुत जल्दी बाधित व् सही हो जाता है.  इसके दूषित होने पर चमड़ी रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. यह ध्वनि और ऊर्जा के प्रवाह का माध्यम है.




वास्तु शास्त्र में वायु तत्व के लिए उत्तर-पश्चिम अर्थात वायव्य कोण निश्चित है.लेकिन भवन बनने के बाद इसका स्थान पूर्व की ओर हो जाता है. भवन में सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए तथा नकारात्मक ऊर्जा के निकास के लिए वायु तत्व का उचित संचालन आवश्यक है.




अग्नि मनुष्य और ईश्वर के बीच एक माध्यम है. संसार में जो जीव भी सजीव है उसमें ऊर्जा है, और ऊर्जा का संचार अग्नि से होता है. वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अग्नि तत्व का समुचित और सही स्थल पर होना आवश्यक है. अग्नि तत्व का श्रोत सूर्य है.  अग्नि हमारे अन्दर उत्साह, परिश्रम तथा भावनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है| शब्द, स्पर्श और रूप इसकी विशेषताएँ हैं. वास्तु शास्त्र के अनुसार अग्नि तत्व का स्थान आग्नेय कोण है जहाँ सूर्य अपनी स्थिति के अनुसार सर्वाधिक ऊर्जा प्रदान कर सकता है. 



जल भी जीवन का मूल है. जल के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं रह जाएगा. पृथ्वी पर जीवन के संचालन के लिए इसके सतह का लगभग तीन चौथाई भाग जल से भरा हुआ है. हमारे शरीर में भी कुल तत्व का तीन चौथाई जल है. जल वह तत्व है जो जीवों में आतंरिक ऊर्जा प्रवाह का कार्य करता है. वेदों में जल को स्वयं में एक सम्पूर्ण औषधि एवं अमृत माना गया है.




 अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तो (ऋग्वेद) 



जल तत्व का स्थान उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण है| शब्द, स्पर्श, रूप एवं रस इसकी विशेषताएँ हैं. पृथ्वी तत्व की मुख्य विशेषताएँ शब्द, स्पर्श रूप, रस और गुण हैं अर्थात यह पाँचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ग्राह्य है. वास्तु शास्त्र में पृथ्वी तत्व स्पष्ट तात्पर्य भू-खंड की भूमि एवं भारी वस्तुओं से है. वास्तु शास्त्र के अनुसार पृथ्वी की सघनता पूर्व से पश्चिम की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है. पृथ्वी तत्व का स्थान घर में दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) है. पंच महाभूत का स्थान है.



lecture 1 - what is vastu shastra

lecture 2 - vastu purush 

lecture 3 - पांच तत्व - five element theory 


Comments

Learn Astrology

you can buy recorded courses and research notes. contact on whatsapp @9899002983

About Me

My photo
prateek gupta
My Name is Prateek Gupta. I am a professional astrologer and vastu consultant. i am doing practice from many years. its my passion and profession. I also teach astrology and other occult subject. you can contact me @9899002983

Popular posts from this blog

सब कुछ सही होने के बाद भी तरक्की नहीं - किस तरह का वास्तु दोष

Popular posts from this blog

सब कुछ सही होने के बाद भी तरक्की नहीं - किस तरह का वास्तु दोष

कुछ लोगो को इस बात की शिकायत रहती है के इन्हे अंदर से ताकत नहीं मिल रही. सब कुछ है लेकिन फिर भी जोश उमंग की कमी है जो तरक्की करने में परेशानी दे रही है. आज बात करते है वास्तु शास्त्र में इस समस्या को कैसे देखते है और क्या है इसका समाधान।

दही से मिलता है आकर्षण सच या झूठ ?

नमस्कार, पीछे मैंने कुछ जगह ये बात सुनी कुछ ज्योतिषियों के मुख से के दही यदि प्राइवेट पार्ट पर लगायी जाए तो काफी आकर्षण आपके अंदर आ जाता है जिससे विपरीत लिंग के लोग आपकी ओर खासकर स्त्रियाँ आकर्षित होती है. इससे आपका शुक्र मजबूत होगा और आप एक परम आकर्षक व्यक्ति बन जाएंगे.

जन्म पत्रिका के पंचम भाव को ठीक करने का वैदिक सूत्र - SECRET REMEDY FOR FIFTH HOUSE ASTROLOGY

कुंडली का जो पंचम भाव होता है वो उत्साह को दर्शाता है एक ऐसा उत्साह जिसमे व्यक्ति को जीने की तमन्ना मिलती है आगे बढ़ने का भाव मिलता है. आज के समय में काफी बड़ा वर्ग सिर्फ शांति की तलाश में इधर उधर भाग रहा है. थोड़ी सी भी परेशानी उन्हें भीतर तक हिला देती है. इन सबका कारण कुंडली का पांचवा भाव होता है. आज जानते है ऐसे छोटे छोटे उपाय जिन्हे आप अपना कर कुंडली पांचवे भाव को ठीक रख सकते है.

Shani Margi 2024 - शनि होंगे मार्गी कुम्भ राशि में, किस राशि पर क्या असर

 शनिदेव 15 नवंबर को मार्गी होने जा रहे है जो की लगभग 139 दिन की वक्र यात्रा पूरी करने के बाद अपनी खुद की राशि कुम्भ में मार्गी होंगे और इसका क्या प्रभाव हर राशि पर देखने को मिलेगा आइये जानते है. 

भलाई करते ही बुरे हाल - ज्योतिष अनुसार ऐसा कब होता है

कभी कभी एक बात सुनने को मिलती है नेकी कर दरिया में डाल यानी भलाई कर के भूल जाओ. लेकिन एक और कहावत है नेकी कर और जूते खा, यानी जितनी भलाई करते जाओगे उतनी परेशानियां बढ़ती ही जा रही है. ज्योतिष में भी ऐसा एक योग होता है जिसमे व्यक्ति जितना अच्छा करता है बदले में उतनी लानते उसे सहनी पड़ती है. आइये जानते है.