यहाँ डिस्कशन पहले भाव के स्वामी का बारहवे भाव में बैठने पर है.
हालाँकि लगन के अनुसार फल अलग होंगे लेकिन एक नार्मल नियम के अनुसार ऐसे जातक का ध्यान पूरे जीवन में विदेशी भूमि पर यानी घर से दूरी , बहुराष्ट्रीय कंपनियों, आध्यात्मिकता या कुछ हद तक दूसरी या ऊपरी दुनिया , अलगाव जैसा महसूस करना,कल्पनाओं की दुनिया में और 12वें घर से संबंधित अन्य प्रॉपर्टीज पर रह सकता है। हमेशा फलादेश काल को ध्यान में रख कर भी किया जाता है पुराने ज़माने में दूसरे शहर जाना भी विदेश जैसा होता था क्यूंकि फर्क बहुत ज्यादा हुआ करता था लेकिन अब जुड़ाव ज्यादा है इसलिए ये नियम दूसरे देश की ओर ज्यादा इशारा करता है. यहाँ शांति बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है चाहे वो मानसिक और आर्थिक या शारीरिक हो.
ये वैदिक ज्योतिष की बहुत सामान्य व्याख्या है यहाँ लगन के स्वामी और उसके साथ जुड़े ग्रह की वजह से और भी फलादेश जुड़ सकते है.
धीरे धीरे पोस्ट को हर लगन के अनुसार जोड़ा जायेगा.
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